ankylosing spondylitis in hindi: Ankylos भी ग्रीक अर्थात् यूनानी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है सन्धि में कठोरता (stiffness) एवं गतिहीनता।
- यह रोग बहत अधिक देखा जाता है रीढ़ की हड्डी के मोहरों (Vertebra) का शोथ (swelling) है जो धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। यह रोग 20 से 40 वर्ष की आयु के मध्य में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को अधिक होता है।
संक्रामक (infectious diseases) रोग के बहुत से लक्षण (symptoms) तथा चिन्ह (signs) इस रोग में दिखाई हैं। इस रोग में रोगी के रक्त (blood) का ई.एस.आर. (ESR) बढ़ा हुआ हो सकता है।
रोग की तीव्रता या क्रियाशीलता के समय हल्का ज्वर या जुरी-सी (Low Grade Fever) भी होता है। इन सबके अतिरिक्त कोई विशेष रोगाणु नहीं देखा जाता है जो रोग का कारण सिद्ध कर दे।
इस रोग का कारण एक प्रकार से पूरी तरह से ज्ञात नहीं (unknown) है। इस प्रकार के रोगी का सन्धिवात के लिये परीक्षण (test) करवाने पर परिणाम Negative आता है।
इससे सधिवात (osteoarthritis) एवं कशेरूक सन्धिशोथ (Ankylosing Spondylitis) में अन्तर स्पष्ट हो जाता है। कशेरूक सन्धिशोथ (Ankylosing Spondylitis) के हो जाने पर 90% से अधिक रोगियों में हिस्टोकम्पैटेविलीटी एण्टीजन (HLA-B27) रोगाणु पाये जाते हैं। रोग की आरम्भिक दशा (starting stage) में इस रोग के निदान( diagnosis) में यही परीक्षण (test) सहायक सिद्ध होता है।
जोड़ो मे बदलाव (आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण)
इस रोग से ग्रस्त जोड़ों (joints) के मृत्युपरान्त (after death) अथवा कुछ अंश लेकर उनका वैज्ञानिक अध्ययन करने पर उसमें सन्धिवात (osteoarthritis) के समान परिवर्तन (changes) ही दिखाई देते हैं।
- कशेरूक सन्धिशोथ (Ankylosing Spondylitis) में अस्थि (bones) का भाग बहुत प्रभावित होता है। एक्स-रे में दिखाई देने योग्य परिवर्तन सबसे पहले सैक्रोइलियक जोड़ (sacroiliac joint) में उत्पन्न होते हैं
जिससे जोड़ (joint) के किनारे अनियमित (टेढ़े तिरछे) दिखाई देते हैं। जोड़ (joint) के निकट वाली अस्थि (bone) भी कुछ मोटी (thick) हो जाती है तथा कशेरूक अस्थि रज्जुओं (Spinal Cord) में अस्थि के अनुरूप परिवर्तन होकर रीढ़ की अस्थि बाँस के समान सीधी व कठोर (Bamboo Like) हो जाती है।
आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण व चिन्ह (signs and symptoms of Ankylosing Spondylitis in hindi)
कशेरूक सन्धिशोथ (Ankylosing Spondylitis) का आक्रमण धीरे-धीरे होता है।
- एक स्वस्थ व्यक्ति को बार-बार पीठ मे दर्द होते रहना इस रोग का लक्षण हो सकता है।
- प्रातःकाल (early morning) को पीठ मे दर्द तथा अकड़न (stiffness) इस रोग के विशिष्ट लक्षणों में शामिल हैं अर्थात जब रोगी सोकर उठता है तो उसकी पीठ अकड़ी हुई होती है तथा उसमें पीड़ा का अनुभव होता है।
- रोग में जैसे-जैसे बढोतरी होती जाती है पूरी रीढ की अस्थि (spinal cord) में अकड़न हो जाती है।
छाती (chest) के कशेरूकों (vertebra) में रोग बढ़ जाने से पसलियों की गति सीमित (limited) हो जाती है। जब रोग साधारण प्रकार का होता है तो रीढ़ की हड्डी कठोर हो जाती है किन्तु उसके आकार में अधिक विकृति (deformity) नहीं होती है।
अधिक तीव्र प्रकार के रोग में ग्रीवा (neck) कशेरुक (गर्दन के मोहरे-vertebra) पीठ तथा कमर के कशेरूकों में विकृति होकर कुबड़ापन (Kyphosis) हो जाता है। ऐसे रोगी अपने सामान्य कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।
- कूल्हे का जोड़ (hip joint) इस दशा तक पहुँच जाये तो रोगी निःसहाय हो जाता है। कुछ रोगियों में इस रोग से परिधि के बाहरी जोड़ (external joints) अधिक प्रभावित होते हैं। इन जोड़ों में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन सन्धिवात (osteoarthritis) रोग के समान ही होते हैं।
25 से 30 प्रतिशत रोगियों में परितारिक शोथ (Iritis) हो जाती है। रोग का यही प्रथम चिन्ह हो सकता है। यदाकदा महाधमनी शोथ (Aortitis) होने से महाधमनी में रक्त वापस आने का विकार (Regurgitation) हो जाता है। यह कशेरूक सन्धिशोथ के बाद वाली अवस्थाओं में होता है। यह सन्धिशोथ कभी आँत्रव्रणयुक्त (intestinal ulcers and swelling) शोथ आदि के साथ भी हो सकती है।
निदान्तर (Diffential Diagnosis of Ankylosing Spondylitis in hindi)
रीढ़ की हड्डी (spinal cord) का अस्थि सन्धिशोथ होने से भी उस स्थान पर पीड़ा (pain) हो सकती है। इस रोग के लक्षण 50 वर्ष की आयु से पहले यदाकदा ही होते हैं।
- इसके साथ शरीर के अन्य भागों में साधारण विकार नहीं हुआ करते और इस प्रकार दोनों रोगों में एक्स-रे द्वारा प्रदर्शित होने वाले परिवर्तनों को सरलता से देखा जा सकता है।
अस्थि सन्धिशोथ में सैक्रोइलियक जोड़ यदाकदा ही ग्रस्त (affected) होता है जबकि कशेरूकों (vertebra) के बीच की डिस्क (टिकिया जैसी रचना) का आकार कम हो जाता है।
- कशेरूकों के शरीर भाग (body) बढ़ने लगते हैं। जवान आदमियों में डिस्क अन्दर को धंस जाती है तथा पीठ (back) वाले भाग में दर्द रहता है।
इस रोग में कुबड़ापन या शियाटिका (Sciatica) या लंगड़ी का दर्द होता है। जबकि सन्धिनिष्क्रय कशेरूक शोथ रोग में उपरोक्त दोनों विकार नहीं होते हैं। इसलिये दोनों रोगों का अन्तर देखना सरल है।
अंकेलोजिंग स्पोंडिलाइटिस का निदान (Diagnosis of Ankylosing Spondylitis in hindi)
इस बीमारी के निदान के लिए डॉक्टरों के द्वारा प्रमुख रूप से करवाए जाने वाले टेस्ट इस प्रकार हैं जैसे कि…
X Rays– खासकर रीड की हड्डी (spinal cord), कूल्हे के जोड़ (hip joint) इत्यादि के
रक्त की जांच में-
ऐसी स्थिति से पीड़ित व्यक्ति के ब्लड में Hla B 27 पॉजिटिव आता है तथा इन्फ्लेमेटरी मारकर जैसे ईएसआर (ESR) तथा सीआरपी (CRP) बढ़ा हुआ मिलता है
- एक्स-रे की जांच करने पर यह पता लगाया जा सकता है कि sacroiliac joint या अन्य कमर के जोड़ों की हड्डियां डैमेज तो नहीं हो रही या उनमें किसी भी तरह का बदलाव एक्स-रे से पता चल जाता है
- कई महीनों से इस बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों के कूल्हे के जोड़ (hip joint) कई बार बिल्कुल जाम (immovable) हो जाते हैं यह स्थिति बहुत ही गंभीर होती है
- ऐसी स्थिति से पीड़ित मरीज चलने फिरने तथा खड़े रहने में भी असमर्थ हो जाता है ऐसी स्थिति के इलाज के लिए हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी (hip replacement surgery) काफी कारगर है
चिकित्सा (treatment of Ankylosing Spondylitis in hindi)
फिनाइलबुटाज़ोन (Phenyl-Butazone) के प्रयोग से इस रोग के लक्षणों में लाभ (benefits) मिलता है। अतः विकरण पद्धति चिकित्सा (Radiation Therapy) आरम्भ करने से पहले यह औषधि प्रयोग कर लेनी चाहिये।
- इस औषधि की मात्रा प्रतिदिन 300 मि.ग्रा. से अधिक नहीं होनी चाहिये। यह औषधि विभिन्न व्यापारिक नामों से मिलती है इन औषधियों के विषैले दुष्प्रभावों (toxic side effects) की चिकित्सा की अवधि में ध्यान के साथ देखते रहना आवश्यक है।
इण्डोमेथासिन (Indomethacin) प्रतिदिन 100 मि.ग्रा. रात्रि को सहायक औषधि के रूप में दे सकते हैं।
नैप्रोक्सेन (Naproxen) 500 से 750 मि.ग्रा. प्रतिदिन देना प्रभावकारी है।
tnf alpha blockers drugs-यह कुछ एक ऐसी दवाइयां है जिनका इस्तेमाल आजकल अंकेलोजिंग स्पोंडिलाइटिस के इलाज के लिए बहुत किया जाता है यह दवाइयां ऐसी स्थिति के इलाज के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद साबित हुई हैं इन के कुछ उदाहरण इस प्रकार है जैसे कि…
- Infliximab
- Adalimumab
- Etanercept
- Golimumab
- Certolizumabइन दवाइयों का सही से इस्तेमाल करने से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में tnf alpha नामक रसायन block हो जाता है जिसकी वजह से अंदरूनी सूजन (Swelling) तथा जोड़ों में होने वाली कठोरता (Stiffness) धीरे-धीरे कम होने लगती है
Interleukin-6 Inhibitors- इस ग्रुप में आने वाली दवा Tocilizumab का इस्तेमाल भी ankylosing स्पॉन्डिलाइटिस के इलाज के लिए सफलतापूर्वक किया जा रहा है
क्षरश्मि चिकित्सा (Radio Therapy in Ankylosing Spondylitis)
जब औषधियों से सन्तोषजनक (satisfactory) लाभ न हो तो यह चिकित्सा की जाती है। रोग की आरम्भिक दशा में इस चिकित्सा विधि के परिणाम बहुत ही अच्छे होते हैं।
- रोग की अधिकता में भी जबकि जोड़ अकड़ (joint stiffness) गये हों तो इस चिकित्सा विधि से अच्छा लाभ होता है। इस चिकित्सा की अवधि में श्वेतरक्ता जिसमें रक्त के अन्दर श्वेतकर्णी की अधिक संख्या (Leukameia) का दोषपूर्ण प्रभाव हो सकता है किन्तु यह बहुत ही कम होता है जैसे एक हजार रोगियों को दी गई चिकित्सा में केवल 3 या 4 रोगियों को माँसपेशियों की शक्ति के लिये कुछ विशेष व्यायाम कराने चाहिये जिससे जोड़ (joints) भी गतिशील हो जायें।
कुछ अधिक रोग वृद्धि की दशा (condition) में रीढ़ की हड्डी की सहायतार्थ रोगी को विश्राम के अनुरूप स्पोर्ट (sport) देनी पड़ती है। रीढ़ की हड्डी (back bone) की विकृति को प्लास्टर लगाकर ठीक करने का प्रयास किया जाये।
- जब इस प्रकार को किसी चिकित्सा से लाभ न हो और रीढ़ का विकार स्पष्ट हो तो हड्डी का ऑपरेशन (Spinal Osteotomy) करके उसको ठीक किया जा सकता है।
जब नितम्ब के जोड़ (hip joint) प्रभावित हो चुके हों तो शल्यक्रिया (surgery) आवश्यक रूप से करानी पड़ेगी। सन्धिवात (osteoarthritis) के सम्बन्ध में जो साधारण उपाय बताये गये हैं उनको इस प्रकार के रोगी के लिये प्रयोग करना चाहिये किन्तु अधिक लम्बे समय तक रोगी को गतिहीन (immovable) नहीं रखना चाहिये।
- प्रैडनीसोलोन तथा हाइड्रोकोर्टिसोन औषधियाँ कशेरूक सन्धिशोथ (Ankylosing Spondylitis) में प्रभावकारी हैं किन्तु इन औषधियों का प्रयोग सीमित (limited) ही करना चाहिये।
परिणाम (result) -रोग की आरम्भिक तीव्र वृद्धि वाली अवस्थाओं (initial stages) में फिनाइलबूटाज़ोन तथा रेडियोथैरापी से अच्छे परिणाम मिलते हैं। उपरोक्त सभी उपायों के एक साथ प्रयोग करने से लाभ की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।
स्पॉन्डिलाइटिस के लिए व्यायाम (आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस का देसी इलाज)
यहां उन EXERCISES की LIST दी गई है जो स्पॉन्डिलाइटिस के PATIENT के लिए फायदेमंद हो सकते हैं जैसे कि…
- प्रेस अप your स्पाइन 10-20 सेकंड के 3-5 राउंड में दिन में एक बार करने से बहुत फायदा होता है।
- वॉल सिट week में 3-5 बार 10 – 20 सेकंड के 5 राउंड में करनी चाहिए।
- प्लैंक week में 3-5 बार प्रत्येक 5 सेकंड के 5 राउंड में करना हितकर है।
- स्टैंडिंग लेग राइज daily 15 बार के एक राउंड में करना बहुत फायदेमंद होता है।
- चिन टक्स 10 -20 seconds के 3-5 राउंड में दिन में दो बार करने चाहिए।
- अपने कंधों को रोल करें daily 5-10 बार प्रत्येक side के एक दौर में जरूर करें।
- अपने कूल्हों को स्ट्रेच करें daily 20-30 सेकंड के एक दौर में हर तरफ करना चाहिए।
- कॉर्नर स्ट्रेच हर तरफ 20-30 seconds के एक राउंड में हर दिन करना बहुत लाभकारी है।
निष्कर्ष (ankylosing spondylitis in hindi)
ankylosing स्पोंडिलाइटिस की शरीर की एक बहुत ही गंभीर स्थिति है इससे निपटने के लिए अनेक प्रकार की दवाइयों का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह अनुसार करना चाहिए
- Steroid दवाइयों का सेवन ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही करना ठीक रहता है ऐसा इसलिए है क्योंकि यह दवाइयां पीड़ित व्यक्ति को आराम तो बहुत पहुंचाती हैं परंतु इनका सेवन ज्यादा मात्रा में करने से अनेक प्रकार के गंभीर दुष्परिणाम हमारे शरीर में होते हैं
मेरी राय में अगर कोई व्यक्ति ऐसी बीमारी से पीड़ित है तो उसे अपनी दिनचर्या में योग, प्राणायाम, मेडिटेशन तथा कुछ विशेष प्रकार की exercises को अपनाकर इस स्थिति से निजात पाने की कोशिश करनी चाहिए ज्यादा दवाइयां खाने से अनेक प्रकार के अन्य गंभीर दुष्परिणाम होने का खतरा हमेशा बना रहता है
Disclaimer (ankylosing spondylitis in hindi)
इस आर्टिकल में दी गई नींद की दवाइयों की जानकारी केवल ज्ञान मात्र के लिए है कृपया नीचे दी गई किसी भी अंग्रेजी दवाई को बिना डॉक्टर की सलाह बिल्कुल भी इस्तेमाल ना करें
क्योंकि इन दवाइयों के सेवन से कई प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं
बाकी यह दवाइयां सिर्फ डॉक्टर की पर्ची पर ही मिलती है इसलिए डॉक्टर की सलाह से ही इस्तेमाल की जानी चाहिए
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद किसी भी दवा का इस्तेमाल अपनी मर्जी से करने से अगर कोई नुकसान होता है तो इसका जिम्मेदार वह व्यक्ति खुद होगा हमारी इसमें कोई भी जिम्मेदारी नहीं होगी
ankylosing spondylitis से पीडित मरीज़ को इस विडियो को जरूर देखना चाहिए
Information Compiled- by Dr Vishal Goyal
Bachelor in Ayurvedic Medicine and Surgery
Post Graduate in Alternative Medicine MD(AM)
Email ID- [email protected]
Owns Goyal Skin and General Hospital, Giddarbaha, Muktsar, Punjab
सन्दर्भ :
https://my.clevelandclinic.org/health/diseases/16595-ankylosing-spondylitis-as–ankylosing-spondylitis study
https://emedicine.medscape.com/article/1201027-overview-hla-b 27 role in diagnosis of ankylosing-spondylitis
https://spondylitis.org/about-spondylitis/possible-complications/iritis-or-anterior-uveitis/-iritis in ankylosing-spondylitis study
https://creakyjoints.org/about-arthritis/axial-spondyloarthritis/axspa-symptoms/ankylosing-spondylitis-complications/-ankylosing-spondylitis heart disease study
https://www.webmd.com/drugs/2/condition-2827/ankylosing%20spondylitis– स्टेरॉयड efficacy in the treatment of ankylosing-spondylitis
https://clinicaltrials.gov/ct2/show/NCT01209689- Study of Tocilizumab in Patients affected with Ankylosing Spondylitis
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/24285490/–Hip replacement surgery in patients suffering from Ankylosing spondylitis