तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव

तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव

तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव– इसकी खेती समस्त भारत में की जाती है। इसके पत्तों का सेवन विभिन्न प्रकार से व्यसन (नशों) के रूप में किया जाता है। शोथ पर इसके पत्तों का सेंक करने या गर्म-गर्म पत्तों के बाँधने से लाभ होता है। दन्तशूल (toothache) में इसका मंजन उपयोगी है। व्यसन रूप में इसका अति सेवन अति हानिकारक है।

इसे सिगरेट, बीड़ी के रूप में चूने के साथ मसलकर दाँतों की जड में रखकर, चूसने के रूप में, पान के साथ चबाकर खाने के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इन विधियों से अति मात्रा में सेवन करना ही व्यसन का रूप ले लेता है जिससे प्रयोगकर्ता इसका आदी (Habituated) हो जाता है। बाद में न चाहकर भी, चाह के कारण (Due to Habit) सेवन करना पड़ता है। धीरे-धीरे इसके विषाक्त प्रभाव से नाना प्रकार के रोग घेर लेते हैं।


तम्बाकू के विषाक्त प्रभाव का कारण निकोटिन (Poisonous Effects of Tobacco Due to Nicotine)

तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव: तम्बाकू का धूम्रपान करने वाला हो या चबाकर खाने वाला अथवा नस्य लेने वाला सेवन किसी भी तरह से क्यों न कर रहा हो। यदि उससे प्रथम दिन के अनुभव के बारे में पूछा जाये तो अवश्य ही कष्टपूर्ण अनुभव ही बतलायेगा। यदि सच-सच बतलाने में संकोच नहीं कर रहा हो।

इसका एक ही कारण यह है कि तम्बाकू में जो कुछ है, शरीर के लिये अनुकूल नहीं कहा जा सकता है। यदि बार-बार सेवन करने से भी कोई स्वस्थ दिखता है तो इसका एक मात्र कारण है शरीर का अभ्यस्त होते जाना और धीरे-धीरे अभ्यस्त होकर तो आज लोग सर्पविष का भी सेवन करने लगे हैं।

यद्यपि तम्बाकू के साथ मजेदार बात यह है कि यह अपने सेवनकर्ता को प्रथम बार तो मिचली, चक्कर आदि द्वारा चेतावनी दे देता है, फिर भी यदि वह सावधान नहीं होता है तो यह अपने सेवनकर्ता के जीवन का अंग बन जाता है और धीरे-धीरे दूरगामी प्रभाव की ओर दकेल देता है।

ये परिणाम विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं, दाँत गिरना, आँखों की रोशनी क्षीण होना, नाना प्रकार के श्वास-संस्थान के रोग यहाँ तक कि कर्कट (कैन्सर Cancer) चाहे वह यकृत का हो या किसी भी अन्य अंग का।


निकोटिन के अन्य नुकसान (तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव)

यद्यपि इसमें अभी तक 24 तरह के विषों का अध्ययन किया जा चुका है जो नाना प्रकार के कष्टों के कारण होते हैं। उनमें निकोटिन सबसे अधिक हानिकारक सिद्ध हो रहा है।

निकोटिन के एक बूंद के प्रभाव से एक कुत्ता मर सकता है। डॉ. केलग के अनुसार एक सिगरेट में जितना तम्बाकू होता है उससे प्राप्त निकोटिन से दो मेंढक आसानी से मर जाते हैं। निकोटिन की 8 बूंदों से एक घोड़ा तुरन्त मर जाता है। इसी से निकोटिन की विषाक्तता का अंदाजा हम लगा सकते हैं।

अभ्यस्त हो जाने से सेवनकर्ता भले ही तुरन्त “मृत्य परिणाम” को प्राप्त ना होने से इस बात में विश्वास न करे, लेकिन वे स्वयं मृत्य की ओर अन्य की अपेक्षा शीघ्र जा रहा होता है।

विशेषज्ञों के अनुसार प्रमाणित हो चका है कि 20-20 सिगरेट या एक बण्डल बीडी अथवा 5 ग्राम सुरती-खैनी आदि के रूप में सेवन करने वाला व्यक्ति अपनी वास्तविक आयु में से 10 वर्ष कम कर लेता है अर्थात् यह मधुर विष (Sweet Poison) की तरह, धीरे-धारे मृत्यु की ओर ले जाता है।

  • निकोटिन से कैंसर, मार्श गैस से हृदय रोग, श्वास संबंधी रोग एवं नेत्रों की कमजोरी, एमोनिया और कोलोडीन से पाचन शक्ति का हास पायराडीन से आँतों में खुश्की और कब्ज, कार्बोलिक एसिड से स्मरण शक्ति की क्षीणता एवं एलाजान से रक्त विकार होते हैं।

इसमें इन विषों के अतिरिक्त बेंजोपायरिन नामक विष भी हाता है जिसके सम्बन्ध में सिद्ध हो चुका है कि इस विष में कैंसर उत्पन्न करने की तीव्र शक्ति है।

निकोटिन का नामकरण (तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव)

सिगरेट के धुयें में मौजद नाइट्रोजन सोमायन होती है जिसके बारे में वैज्ञानिक एक मत है कि यह जानवरों में कैन्सर का मुख्य कारण है। अच्छी-बड़ी मात्रा में शरीर में पहुँच जाती है।

  • एक अनुमान के अनुसार एक घण्टे तक ऐसे वातावरण में रहने से 15 सिगरेटों के प्रयोग से जितनी नाइट्रोजन सोमायन शरीर में पहुँचती है इतनी ही नाईट्रोजन सोमायन मनुष्य बिना सिगरेट पिये प्राप्त कर लेता है।

“निकोटिन” का नामकरण पुर्तगाल में फ्रांसीसी राजदूत “जेन निकोट” के नाम पर किया गया है। इसी राजदूत ने 1561 में फ्रांस में तम्बाकू का रिवाज डाला था। यही से निकोटिन शब्द प्रचलित हुआ।

जिस कागज द्वारा सिगरेट बनाया जाता है। वह एक विशेष प्रकार के घोल से बनता है। उस घोल में संखिया का मिश्रण होता है। जब यह कागज जलता है तब परिवर्तित होकर परफोरोल नामक नये विष को उत्पन्न कर देता है। यह विष मस्तिष्क के ज्ञान-तन्तुओं पर धीरे-धीरे दूरगामी प्रभाव डालता हुआ उन्हें निष्क्रिय कर देता है।

Also Read“शराब पीने के फायदे और नुकसान”


तम्बाकू से कैन्सर (Tobacco Causes Cancer)

तम्बाकू एवं पान चबाने से कैन्सर की संभावना बढ़ जाती है। मुँह में पान की पीक रखना और पान को देर तक चबाना मुख (Mouth) के कैन्सर का प्रमुख कारण है।

तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव
फेफड़ों का कैंसर

यह जानकारी अनुसन्धान द्वारा मिली है। उड़ीसा में कैन्सर अनुसन्धान केन्द्र की क्षेत्रीय शाखा के डॉ. यू.आर. पारिजा द्वारा किये गये इस अध्ययन से यह पता चला है कि 50% से भी अधिक रोगियों में पान के प्रयोग के कारण मुख के कैन्सर के लक्षण मौजूद हैं।

तम्बाकू व पान-मसाला या पान की खैनी मुँह में एक जगह रखने से मुँह की भीतरी त्वचा का जल जाना एवं घाव का बनना और अन्त में कैंसर में परिवर्तित हो जाना, आये दिन ऐसे सैकड़ों रोगी देखे जाते हैं। अतः पान, पान-मसाला, तम्बाकू, अधिक धूम्रपान से अपने आपको बचाये रखें।

नशामुक्ति एवं उपचार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सकों ने अपने निर्णय दिये कि भारत के कैंसर के रोगियों में लगभग 25% की मृत्य मुह के कैंसर के कारण होती है जबकि अम्रीका में यह दर मात्र 5% है। मुख कैंसर का मुख्य कारण बराबर तम्बाकू चबाना है।

also read“तम्बाकू छोड़ने के उपाय”


तम्बाकू से होने वाले रोग (Noxiousness of Tobacco)

यद्यपि तम्बाकू के सम्बन्ध में, ऊपर संक्षिप्त में चर्चा की जा चुकी है कि इससे हानिया ही होती है कोई लाभ नहीं। यहाँ तक कि इसे कैंसर तक का कारण बतलाया गया है। इनके अतिरिक्त भी इससे अनेक हानियाँ सिद्ध हुई हैं एवं हो रही हैं।

  1. संसार में सबसे अधिक सिगरेटों की खपत अमेरिका में है। वहाँ 25% मौत धूम्रपान के कारण होती हैं।
  2. गले और फेफडों का कैंसर, श्वासनली में ब्रोंकाइटिस आदि रोग और सब से अधिक हृदय रोग धूम्रपान के कारण ही होते हैं।
  3. डॉ. के.एल. चोपडा (हार्ट केयर फाउण्डेशन के अध्यक्ष) के अनुसार धूम्रपान करने वालों को दिल का दौरा (Heart attack) पड़ने की संभावना सामान्य व्यक्तियों से कई गुना अधिक होता है।
  4. सिगरेट प्रतिदिन पीने वाले व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने की दो गुणा सम्भावना रहती है जबकि 40 सिगरेट प्रतिदिन पीने वाले को दिल का दौरा पड़ने की दस गुना अधिक सम्भावना होती है।
  5. एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के होंठ, मुँह, गले, भोजन की नली, मूत्राशय आदि में कैंसर की संभावना चार गुना अधिक होती है। फेफड़ों के कैंसर की संभावना धूम्रपान न करने की अपेक्षा धूम्रपान करने वालों में 20 गुना अधिक होती है।
  6. फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान से होने वाला सबसे घातक रोग है।
  7. विशेषज्ञों के अनुसार जो आदमी 20 सिगरेट प्रतिदिन पीते हैं उनके फेफड़ों में प्रत्येक वर्ष लगभग एक लीटर “टार” जमा हो जाता है। यह धीरे-धीरे फेफड़ों के विभिन्न भागों और तन्तुओं को प्रभावित करता तथा  इसी से फेफड़ों का कैंसर हो जाता है।
  8. धूम्रपान करने के कारण पहले अक्सर साँस लेने में कष्ट होता है। कुछ समय बाद यह दमे के रूप में बदल जाता है।

तम्बाकू खाने के फायदे और नुकसान

जो बाल्यकाल से ही तम्बाकू का सेवन करते हैं उनके दाँतों में विकृतियाँ आ जाती हैं, दाँतों में गढ़े बन जाते, दाँत गन्दे एवं कमजोर भी हो जाते हैं।

  • सुगन्धित तम्बाकू या पान-मसाला आदि अधिक चबाने से मुंह में छाले, गालों की त्वचा पर झुरियाँ, सिकुड़न और मुँह खुलने में कष्ट होता है। इसे म्यूकस फाइब्रोसिस रोग (Mucous Fibrosis) कहते हैं। इस रोग से ग्रस्त होने पर खाना खाना कठिन हो जाता है। तम्बाकू के सदृश ही पान एवं पान-मसालों का अति कैंसर एवं अन्य रोगों के कारण प्रमाणित हो रहे हैं।

तम्बाकू खाने वाले बच्चों को युवावस्था तक पहँचते-पहुँचते ल्यूकोप्लेरिया (Leucopleria) नामक रोग हो जाता है। इस रोग में मुँह के अन्दर विभिन्न भागों में घाव हो जाते हैं। साथ ही इसके आदी (Habituated) हो जाने के कारण समय पर तम्बाकू ना  मिल पाने से कार्य क्षमता नहीं रहती एवं चिड़चिड़ापन भी बढ़ जाता है।

  • तम्बाकू के अति सेवन से युवकों में शुक्राणओं की संख्या भी कम हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार फिलहाल पूरे विश्व में करीब 25 लाख लोग हर वर्ष धुम्रपान और तम्बाकू सेवन करने से होने वाले रोगों से अपनी वास्तविक मृत्यु से पहले रोगी होकर मर जाते हैं।

  • तम्बाकू सेवन करने तथा धूम्रपान से होने वाली हानियों से लोग परिचित हैं। कैंसर, हृदय रोग, क्षय रोग, श्वासनली शोथ, वातस्फीति जैसे तम्बाकू सेवन से होने वाले रोगों से दुनिया में मरने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है।

धूम्रपान के कारण अमेरिका में 4-5 हजार तक, ब्रिटेन में 1000 तथा कनाडा में 500 निष्क्रिय धूम्रपानियों की प्रति वर्ष मृत्यु हो जाती है।

तम्बाकू के दुष्प्रभाव पर निबंध

तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव: कई डॉक्टरों का विचार है कि तम्बाकू खाने वालों का कोना एवं दीवार, चबाने वालों का मुहं, पीने वालों की छत और सूघने वालों का रुमाल सदा गन्दा ही रहता है ऐसे लोग कहीं भी रहकर स्वच्छता के सिद्धान्त को पालन नहीं कर पाते हैं तथा ना पीने वालों की नज़र में गिरे ही रहते हैं।

धुम्रपान से नपुंसकता, मोतियाबिन्द, सूघने की शक्ति का कम होना, मधुमेह तथा रक्तहीनता आदि रोग भी हो जाते हैं।

तम्बाकू की ये हानियाँ स्पष्ट हैं फिर भी अज्ञानवश लोग इसे अपना रहे हैं और परिवार के, समाज के और देश के भविष्य के आधार जो बच्चे हैं उन्हें भी प्रेरित कर रहे हैं यह खेद की बात है। प्रसन्नता की बात है कि अब तक के ज्ञात सूत्रों के अनुसार इस पर नियत्रण के कार्यक्रम जारी हो चुके हैं। विश्व के 12 देशों तथा उनके स्थानीय प्रशासन निकाया मे कार्यस्थल पर धूम्रपान करने पर कानूनी तौर पर रोक लगा दी है। 47 देशों में सार्वजनिक स्थानों पर कानूनी निषेध लगाया है जबकि 20 देशों में इसके विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

सरकारी हिदायतों से अधिक आवश्यक है अपने आपको संभालना, जो बचे हैं, वे बचे रहें, ऐसी संगतियों से दूर रहें जो इसके व्यसनी हो चुके हैं उन्हें भी इससे उत्पन्न हानियों को देखते हुये अपनी प्रबल इच्छा शक्ति को जगाकर इसे छोड़ देना चाहिये।


धूम्रपान से महिलायों मे होने वाली समस्यायें

तम्बाकू या धूम्रपान से होने वाले हानियाँ प्रत्येक आयु के लोगों पर सामान रूप से अपना प्रभाव डालती हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी रोग हैं जो केवल महिलाओं को ही होते हैं। जैसे…

1. “एस.एन. मेडिकल कॉलेज आगरा” के पैथोलोजी विभाग की अध्यक्ष डा. (श्रीमती) विजयलक्ष्मी लाहिरी ने अपने शोधपत्र में (31.12.89) प्रमाणित किया है कि तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं को अन्य स्त्रियों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक पैदा होती है। उसके अनुसार ऐसी स्त्रियों को निम्न समस्यायें होती हैं।तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव

2. प्रथम तो गर्भ धारण भी एक समस्या होती है। यदि गर्भाधान हो भी जाये तो गर्भपात की संभावना होती है। यदि गर्भ रह भी जाये तो कन्या की संभावना अधिक होती है।

3. जो बच्चे पैदा होते हैं उनका वजन सामान्य से कम, कमजोर स्वास्थ्य, अविकसित दिमाग एवं भोंदू सा अधिक देखने को मिलता है।

4. गर्भाशय सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ भी सामान्य की अपेक्षा तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं में अधिक होती हैं।

नये शोध के अनुसार डॉ. नायलेंडर के अनुसार-गर्भावस्था में धूम्रपान करने से भावी सन्तान में कैंसर की संभावना अधिक होती है। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है।

  • क्योंकि गर्भावस्था में यदि टिटेनस टॉक्साइड इस दृष्टि से दी जाती है कि भावी सन्तान को टिटेनस रोग से बचाया जाये और यह प्रयोग सफल भी प्रमाणित हो रहा है तो गर्भावस्था में कैंसरकारक योगों का सेवन करने से बच्चों में कैंसर क्यों नहीं हो सकता ?

जब से महिलाओं में धूम्रपान (तम्बाकू सेवन) का प्रचलन हुआ है। महिलाओं में स्तन कैंसर के रोग में भी लगातार वृद्धि हो रही है।


तम्बाकू के विषाक्त प्रभावों की चिकित्सा 

जो तम्बाकू के अभ्यस्त नहीं हैं वे भूल से या जानबूझकर प्रथम बार सेवन करते हैं तो उन पर तम्बाकू का विषाक्त प्रभाव पड़ता है, वमन, चक्कर आना, व्याकुलता आदि लक्षण प्रकट होते हैं। जो कि तम्बाकू में निकोटिन नामक विषैले तत्त्व के कारण होते हैं। इस परिस्थिति में चिकित्सा अपेक्षित होती है।

  • तुरन्त लौंग चबाने को दें या लौंग पीसकर पानी में घोलकर पिला दें। रोगी (तम्बाकू विष से पीड़ित व्यक्ति) का अच्छी तरह मुँह साफ करके तथा ठन्डे पानी के छीटें मारकर मस्तक को अच्छी तरह धोयें। 20-25 मि.लि. प्याज का रस अकेले या पानी में मिलाकर पिला दें। विष का प्रभाव दूर हो जायेगा।
  1. तम्बाकू के विष को दूध भी दूर करता है। “दारा शिकोही” के लेखन के अनुसार दूध के इस्तेमाल से तम्बाकू की सारी हानिया दूर होती है। वह लिखते हैं कि जो कपडा तम्बाकू के धुएं से रंगीन हो जाये वह सिवाय दूध के किसी चीज से साफ नहीं हो सकता

Tanic एसिड मिश्रित गर्म पानी से स्टॉमक ट्यूब द्वारा आमाशय को साफ करें। यह सबसे आवश्यक है। शरीर को एवं हाथ-पैरों को मालिश करके गर्म रखें, जरूरत हो तो सिकाई भी करें। सिर पर बर्फ की थैली, बर्फ या ठण्डे पानी में भीगा कपडा रखें एवं Atropine या स्ट्रिकनीन का इंजेक्शन त्वचा में डाक्टर के द्वारा लगाया जा सकता है।


लक्षणानुसार होमियोपैथिक औषधियाँ 

  1. आर्सेनिक एल्बम (Arsenic Alb.) 30, 200- इसके सेवन से जर्दा का दुष्परिणाम दूर हो जाता है।
  2. क्लीमेटिस (Clematis) 30 तथा प्लानटैगो (Plantago) Q– तम्बाकू खाने के कारण उत्पन्न दाँत दर्द में लाभप्रद है।
  3. जेल्सेमियम (Gelsemium)3x. 30– सिर में चक्कर आना और सिरदर्द यदि तम्बाकू के सेवन से हुआ हो तो यह लाभप्रद है।
  4. इग्नेशिया (Ignatia) 30– तम्बाकू के सेवन से तेज हिचकी आती हो तो इसे दें।
  5. इपिकाक (Ipecac)3x, 30- तम्बाकू के सेवन से मिचली और वमन हो रही हो तो इसका प्रयोग करें।
  6. लाइकोपोडियम (Lycopodium) 200, IM– ध्वजभंग एवं अकड़न तम्बाकू के सेवन से हो तो सेवन दें।
  7. नक्सवोमिका (Nux-vomica) 30– मुँह का स्वाद बेस्वाद हो, तम्बाकू सेवन इसका कारण रहा हो तो इसे प्रयोग करें।
  8. फास्फोरस (Phosphorus) 200, IM- यदि तम्बाकू सेवन से सुस्ती के साथ-साथ हृत्स्पन्दन या हृत्पिण्ड की क्षीणता-सा अनुभव हो तो यह लाभप्रद है।
  9. सिपिया (Sepia) 200- यदि तम्बाकू के सेवन से अजीर्ण या मुँह के दाहिनी ओर का स्नायुशूल हो तो इसे दें।

अस्वीकरण (तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव)

इस लेख की सामग्री व्यावसायिक चिकित्सा सलाह (professional medical advice), निदान (diagnosis) या उपचार (treatment) के विकल्प के रूप में नहीं है।

चिकित्सीय स्थिति के बारे में किसी भी प्रश्न के लिए हमेशा चिकित्सीय(doctor कंसल्टेशन) सलाह लें।

उचित चिकित्सा पर्यवेक्षण (without proper medical supervision) के बिना अपने आप को, अपने बच्चे को, या किसी और का  इलाज करने का प्रयास न करें।

“तम्बाकू के हानिकारक प्रभाव” पढने के लिए धन्यवाद…


सन्दर्भ:

https://www.drbatras.com/say-no-tobacco-homeopathy- homeopathy role in tobacco withdrawal

https://www.medindia.net/news/homeopathic-remedies-to-quit-smoking-170513-1.htmhomeopathy role in tobacco withdrawal

https://www.cdc.gov/cancer/tobacco/index.htm tobacoo causes cancer study

https://www.webmd.com/baby/smoking-during-pregnancy- tobacco affects pregnancy

https://bmcpublichealth.biomedcentral.com/articles/10.1186/s12889-018-6319-3 tobacco affects sperm quality


 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

hello